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कु. वें. पुटप्पा

कर्नाटक के शिवमोगा ज़िले के एक छोटे से गाँव में सन् 1904 में जनमे डॉ. कु.वें. पुट्टप्पा (काव्यनाम ‘कुवेंपु’) का आधुनिक कन्नड़ साहित्य-शिल्पियों में सर्वोच्च स्थान है। मैसूर के रामकृष्ण आश्रम में अपनी शिक्षा पूर्ण करने के बाद 1929 में मैसूर विश्वविद्यालय में कन्नड़ भाषा साहित्य के व्याख्याता का पद-भार सँभाला और सभी प्रकार की शैक्षणिक गतिविधियों में अपना योगदान करते हुए उपकुलपति के पद से वहीं से सेवानिवृत्त हुए। मूलतः कवि होकर भी कुवेंपु ने प्रायः सभी विधाओं में अपनी लेखनी से कन्नड़ साहित्य की श्रीवृद्धि की है। उनकी अब तक 70 से अधिक कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें काव्य, नाटक, उपन्यास, कहानी, समीक्षात्मक निबन्ध, चरित्र, बालोपयोगी साहित्य आदि हैं। कन्नड़ साहित्य को उनके महत्त्वपूर्ण अवदान एवं शिक्षाविद् के रूप में उनकी श्लाघ्य सेवाओं के लिए नेशनल अकादेमी ऑफ़ लेटर्स ने 1955 में उन्हें पुरस्कृत किया और भारत सरकार ने 1958 में ‘पद्मभूषण’ उपाधि प्रदान की। उनकी षष्टिपूर्ति समारोह के अवसर पर मैसूर राज्य सरकार ने उन्हें ‘राष्ट्रकवि’ की उपाधि से अलंकृत किया। 1967 में वे भारत के सर्वश्रेष्ठ साहित्य पुरस्कार ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से सम्मानित हुए। सन् 1994 में देहावसान।

शूद्र तपस्वी एवं अन्य दो नाटक

कु. वें. पुटप्पा

मूल्य: $ 9.95

‘शूद्र तपस्वी’ ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कन्नड़ साहित्य-शिल्पी कु. वें. पुटप्पा (कुवेंपु) की अद्वितीय नाट्यकृति है।

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